उलझन बेटा और पति की

एक प्यारा सा बेटा था, जो घर का सबसे दुलारा था।

मां बाप और घरवालों के , वो आखों का तारा था।

शैतानी करता मासूमियत से, वो इतना प्यारा था।

बचपन से किशोरावस्था में, उसने अब प्रवेश किया।

जिंदगी की चुनौतियों को, पहली बार महसूस किया।


।।एक प्यारा सा बेटा था, जो घर का सबसे दुलारा था।।


समय का चक्र चलता रहा, वो बच्चा सायना होने लगा।

दुनियादारी होती क्या है, उसे समझ आने लगा।

धीरे धीरे अपनी मासूमियत, उसे वो खोने लगा।

घर की जिम्मेदारियों का , एहसास उसे होने लगा।


।।एक प्यारा सा बेटा था, जो घर का सबसे दुलारा था।।


किशोरावस्था के बाद वो, युवावस्था में प्रवेश किया।

इस अवस्था में आने पर, उसने बहुत संघर्ष किया।

खुद के शौक को मारकर, अपनो को हमेशा खुश किया।

अपने घरवालों की जरूरतों का, उसने सब प्रबंध किया।

घरवालों के इच्छा से ही, उसने अब विवाह किया।


।।और जिंदगी की दूसरी कहानी यही से शुरू होती है।

समय धीरे धीरे बीतता है,लड़के की जिम्मेदारियां बढ़ती है,

वो करता भी है, लेकिन एक दिन अकेले में सोच रहा होता है,

अपने बचपन को याद करता है।।


बच्चा था तो सबका था मैं, पर अब मैं तो बट गया।

पहले प्यार सबका मिलता था, वो भी अब घाट गया।

बेटा था तो सबका था , मुझे आज महसूस हुआ।

पति बनकर न जाने, कौन सा मुझसे कसूर हुआ।

मां को खुश करो तो बेटा अच्छा, पत्नी को करो तो पति।

किसी एक में कमी हुई तो, होती हैं मेरी दुर्गति।

मां और पत्नी है पत्थर एक जात के,

बीच में पिस्ता है बेटा इस इन दोनो के साथ में।

जीता है वो घुट घुट कर, रोता उसका है दिल।

बेटा बनना आसान है, पर पति बनना मुश्किल।

।।एक प्यारा सा बेटा था, जो घर का सबसे दुलारा था।।


                      लेखिका:- Khushboo Singh 

                       सहयोग:- R.S. Sikarwar 

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